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Saturday, December 6, 2025

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भारत में कितने लोग हिंदी और मराठी बोलते हैं? जानिए ताजा आंकड़े और विवाद की वजह

भारत में भाषाई विविधता हमेशा चर्चा में रहती है। हाल ही में हिंदी और मराठी भाषा को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर राजनीति में हलचल मचा दी है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि भारत में कितने लोग हिंदी बोलते हैं और कितने मराठी।

हिंदी बनाम मराठी विवाद क्यों गरमाया?

महाराष्ट्र से शुरू हुआ हिंदी-मराठी विवाद अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। ठाकरे परिवार के राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे करीब दो दशक बाद एक मंच पर नजर आए। 5 जुलाई को मुंबई के वर्ली डोम में आयोजित विजय रैली में मराठी स्वाभिमान और हिंदी थोपे जाने का विरोध इसका मुख्य मुद्दा बना।

इस भाषाई मुद्दे को तमिलनाडु में भी समर्थन मिला है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी हिंदी थोपे जाने के विरोध में ठाकरे बंधुओं का समर्थन करने की बात कही है। इससे पहले मराठी को लेकर महाराष्ट्र में कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जहां लोगों को जबरन मराठी बोलने के लिए मजबूर किया गया या हिंसा हुई।

भारत में कितने लोग हिंदी बोलते हैं?

अगर हिंदी भाषा की बात करें तो यह भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी बोलने वालों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि यह दुनिया के कई देशों की कुल आबादी से भी ज़्यादा है।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या करीब 121 करोड़ थी जो अब 140 करोड़ को पार कर गई है। उस समय के आंकड़ों के अनुसार भारत में 45.11% लोग हिंदी बोलते हैं। यानी हर दूसरा भारतीय हिंदी भाषी है। अगर कुल संख्या देखें तो हिंदी बोलने वालों की संख्या 52 करोड़ 83 लाख 47 हज़ार 193 थी।

भारत में कितने लोग मराठी बोलते हैं?

मराठी भाषा की बात करें तो यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र और उसके आस-पास के इलाकों में बोली जाती है। यह महाराष्ट्र की आधिकारिक भाषा है और गोवा में भी बड़ी संख्या में लोग मराठी बोलते हैं।

जनगणना 2011 के अनुसार भारत में मराठी बोलने वालों की संख्या 8 करोड़ 30 लाख 26 हज़ार 680 है। यानी मराठी बोलने वाले लोग देश की कुल आबादी का लगभग 7.09% हैं। अगर तुलना करें तो मराठी बोलने वालों की संख्या हिंदी बोलने वालों से बहुत कम है।

निष्कर्ष

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भाषा को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। हिंदी और मराठी विवाद ने दिखा दिया है कि भाषा सिर्फ़ अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान से भी जुड़ी हुई है। आंकड़े साफ़ तौर पर बताते हैं कि हिंदी बोलने वालों की संख्या मराठी से कई गुना ज़्यादा है, लेकिन अपनी मातृभाषा को लेकर लोगों की भावनाएँ भी उतनी ही गहरी हैं।

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