डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली (21 अप्रैल 1933 – 3 जुलाई 1998) भारतीय अध्यात्म, मंत्र, तंत्र और यंत्र साधना के सर्वोच्च आचार्य माने जाते हैं। वे सिद्धाश्रम के महागुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज के रूप में भी प्रसिद्ध हुए। जीवनभर उन्होंने केवल एक ही लक्ष्य रखा – भारत की प्राचीन आध्यात्मिक विद्या को पुनर्जीवित करना और समाज तक पहुँचाना।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
राजस्थान के जोधपुर में जन्मे डॉ. श्रीमाली का विवाह कम आयु (12 वर्ष) में भगवती देवी से हुआ। लेकिन सांसारिक जीवन उन्हें आकर्षित नहीं कर पाया। उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे जोधपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष बने, लेकिन शीघ्र ही उन्होंने अध्यात्म की राह चुन ली।
हिमालय की गुफाओं में वर्षों तक उन्होंने योगी, संत और महात्माओं से मंत्र, तंत्र, ज्योतिष, सूर्य विज्ञान, आयुर्वेद, सम्मोहन, हस्तरेखा और रसायन विद्या का गहन अध्ययन किया। 18 वर्षों की साधना के बाद उन्हें सिद्धाश्रम में अपने गुरुदेव परमहंस स्वामी सच्चिदानंद जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। गुरु आदेशानुसार वे गृहस्थ जीवन में लौटे और समाज में मंत्र-तंत्र की सच्ची विद्या का प्रचार-प्रसार शुरू किया।
सिद्धाश्रम साधक परिवार और मासिक पत्रिका
गुरुदेव ने 1981 में “मंत्र तंत्र यंत्र विज्ञान” पत्रिका की शुरुआत की, जिसमें साधना विधियों, आध्यात्मिक लेखों और शिष्यों को दिए उपदेशों को प्रकाशित किया जाता है।
उन्होंने “सिद्धाश्रम साधक परिवार” की स्थापना भी की, ताकि गुरु-शिष्य परंपरा कायम रहे और सही दीक्षा के माध्यम से साधकों को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग मिले।
ग्रंथ और साहित्यिक योगदान
डॉ. श्रीमाली ने 300 से अधिक पुस्तकों की रचना की, जो आज भी साधकों का मार्गदर्शन कर रही हैं। कुछ प्रमुख कृतियाँ –
- प्रैक्टिकल पामिस्ट्री
- प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म
- कुंडलिनी तंत्र
- गुरु गीता
- मंत्र रहस्य
- ध्यान, धारणा और समाधि
- Alchemy Tantra
- The Ten Mahavidyas
- गोपनीय दुर्लभ मंत्रों के रहस्य
- हस्तरेखा विज्ञान और पंचांगुली साधना
- सिद्धाश्रम रहस्य
- कुंडलिनी यात्रा – मूलाधार से सहस्रार तक
इनके अलावा भी अनेक ग्रंथों में उन्होंने तंत्र साधना, योग, आयुर्वेद और अध्यात्म की गहराइयों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया।
सम्मान और उपलब्धियाँ
- 1979: विश्व ज्योतिष सम्मेलन (World Astrology Conference) के अध्यक्ष चुने गए।
- 1982: तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. बी.डी. जट्टी ने उन्हें “महामहोपाध्याय” की उपाधि दी।
- 1987: पैरासाइकोलॉजिकल काउंसिल द्वारा “तंत्र शिरोमणि” सम्मान।
- 1988: मंत्र संस्थान द्वारा “मंत्र शिरोमणि” की उपाधि।
- 1989: उपराष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा “समाज शिरोमणि”।
- 1991: नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. भट्टाराई ने उन्हें धार्मिक और सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित किया।
सिद्धाश्रम और गुरुदेव की दृष्टि
गुरुदेव का मानना था कि सिद्धाश्रम एक वास्तविक दिव्य लोक है, जो कैलाश और मानसरोवर के उत्तर में स्थित है। यहाँ आज भी महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, आत्रि, शंकराचार्य और अन्य महान योगी साधना कर रहे हैं।
उनका कहना था कि –
“मंत्र और तंत्र का उद्देश्य जीवन को सरल, सफल और आनंदमय बनाना है। सही साधना, शुद्ध उच्चारण और गुरु मार्गदर्शन से कोई भी साधक असाधारण उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकता है।”
अंतिम दिन और विरासत
3 जुलाई 1998 को डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली ने अपना भौतिक शरीर त्याग दिया। लेकिन उनके अनुयायी मानते हैं कि वे आज भी सिद्धाश्रम से साधकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
उनकी शिक्षाएँ, ग्रंथ और पत्रिका आज भी असंख्य साधकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। वे केवल ज्योतिषाचार्य और तंत्र विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक युग के पथप्रदर्शक थे।
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